497 IPC in Hindi धारा 497 क्या है (IPC 497 in Hindi)

Indian Kanoon 497 IPC in Hindi:- धारा 497 क्या है ? (IPC 497 in Hindi). 497 IPC in Hindi IPC Section 497 in Hindi What is IPC Section 497 Punishment? Know 497 IPC Bailable or Not. IPC Section for  Criminal Intimidation.

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 एक समय तक विवाहेतर संबंधों (adultery) से संबंधित थी। यह धारा विवाह के पवित्र बंधन को बनाए रखने और विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। इस लेख में हम आईपीसी धारा 497 के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझेंगे, इसके इतिहास, प्रावधानों और वर्तमान स्थिति पर चर्चा करेंगे।

IPC Section 497 in Hindi परिभाषा

IPC Section 497:- आईपीसी धारा 497 के अनुसार, यदि कोई पुरुष किसी अन्य पुरुष की पत्नी के साथ उसकी सहमति से यौन संबंध बनाता है, और यह संबंध उस महिला के पति की अनुमति के बिना होता है, तो यह अपराध माना जाता था। इस धारा के तहत केवल पुरुष को अपराधी माना जाता था, जबकि महिला को अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता था।

धारा 497 की परिभाषा इस प्रकार थी: “जो कोई व्यक्ति ऐसी स्त्री के साथ, जिसे वह जानता है या जिसके बारे में विश्वास करने का कारण है कि वह किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और उसका पति जीवित है, उस पुरुष की सहमति या मिलीभगत के बिना संभोग करता है, ऐसा संभोग उस स्त्री की इच्छा या सहमति से किया गया हो, तब वह पुरुष व्यभिचार का दोषी होगा, और उसे किसी अवधि के लिए, जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।”

इस परिभाषा से स्पष्ट है कि इस धारा के तहत केवल पुरुष को ही अपराधी माना जाता था, जबकि महिला को इस अपराध से मुक्त रखा गया था।

IPC 497 in Hindi आईपीसी धारा 497 के अनुसार दण्ड

IPC Section 497:- आईपीसी धारा 497 के तहत दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान था। इस धारा का उद्देश्य विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न होने वाले सामाजिक और व्यक्तिगत विवादों को नियंत्रित करना था। धारा 497 के अनुसार, इस अपराध के लिए निम्नलिखित सजा का प्रावधान था:

  1. सजा: दोषी को अधिकतम 5 साल की कारावास और/या जुर्माने की सजा दी जा सकती थी।
  2. जुर्माना: कारावास के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता था, जिसकी राशि न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती थी।

यह सजा अपराध की गंभीरता को दर्शाती थी और यह सुनिश्चित करती थी कि ऐसे अपराधी कानून के दायरे में आएं और उन्हें उनके कृत्यों के लिए दंडित किया जाए।

IPC Section 497 Punishment आईपीसी धारा 497 के अनुसार दण्ड की सजा

497 IPC Bailable or Not:- आईपीसी धारा 497 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता था, तो उसे पाँच साल तक के कारावास और/या जुर्माने की सजा हो सकती थी। यह सजा इस बात पर निर्भर करती थी कि अपराध कितना गंभीर है और विवाहेतर संबंध के कारण पीड़ित व्यक्ति को कितना नुकसान हुआ है।

न्यायालय का दृष्टिकोण

न्यायालय अपराध की गंभीरता और पीड़ित व्यक्ति के साथ किए गए छल की मात्रा के आधार पर सजा तय करता था। न्यायालय यह भी देखता था कि अपराधी ने कितने समय तक विवाहेतर संबंध बनाए रखा और पीड़ित व्यक्ति को किस प्रकार का मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाया।

उदाहरण के तौर पर

यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य पुरुष की पत्नी के साथ उसके पति की सहमति के बिना यौन संबंध बनाता था, और यह संबंध उस महिला की सहमति से होता था, तो इस अपराध के लिए उसे पाँच साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता था। इस प्रकार की सजा का उद्देश्य समाज में विवाह के पवित्र बंधन को बनाए रखना और विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को नियंत्रित करना था।

Effect of 497 IPC in Hindi आईपीसी धारा 497 का प्रभाव

497 IPC Bailable or Not:- आईपीसी धारा 497 का समाज पर गहरा प्रभाव था। यह धारा विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को नियंत्रित करती थी और विवाह के पवित्र बंधन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। इस धारा के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

महिलाओं की स्थिति

धारा 497 के तहत केवल पुरुष को ही अपराधी माना जाता था, जबकि महिला को इस अपराध से मुक्त रखा गया था। यह धारा महिलाओं को एक हद तक सुरक्षा प्रदान करती थी, लेकिन साथ ही यह उनकी सहमति को नजरअंदाज करती थी, जिससे महिलाओं की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता था।

सामाजिक जागरूकता

इस धारा के कारण समाज में जागरूकता बढ़ती थी कि विवाहेतर संबंध कानूनी अपराध है और इसे सहन नहीं किया जाएगा। इससे समाज में विवाह के प्रति सम्मान बढ़ता था और लोगों को विवाहेतर संबंधों के नकारात्मक परिणामों के बारे में पता चलता था।

अपराधियों को दंड

धारा 497 के तहत अपराधियों को सजा मिलती थी, जिससे समाज में एक मजबूत संदेश जाता था कि विवाहेतर संबंध गंभीर अपराध है और इसे सहन नहीं किया जाएगा। इससे अपराधियों में भय पैदा होता था और वे इस प्रकार के अपराध करने से बचते थे।

Example of 497 IPC in Hindi आईपीसी धारा 497 का उदाहरण

धारा 497 का एक उदाहरण इस प्रकार है:

उदाहरण

राहुल ने अपने पड़ोसी की पत्नी प्रिया के साथ उसके पति की सहमति के बिना यौन संबंध बनाए। प्रिया की सहमति थी, लेकिन उसके पति को इस बारे में पता नहीं था। जब प्रिया के पति को इस बारे में पता चला, तो उसने राहुल के खिलाफ धारा 497 के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

जांच के बाद, राहुल को आईपीसी धारा 497 के तहत दोषी पाया गया और उसे पाँच साल की कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई। इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि धारा 497 विवाहेतर संबंधों को नियंत्रित करने और समाज में विवाह के पवित्र बंधन को बनाए रखने के लिए बनाई गई थी।

497 IPC Bailable or Not in Hindi

497 IPC Bailable or Not:- आईपीसी धारा 497 के तहत अपराध जमानतीय (Bailable) था। इसका मतलब है कि इस धारा के तहत आरोपी को सीधे जमानत मिल सकती थी। आरोपी को जमानत पाने के लिए न्यायालय में आवेदन करना पड़ता था और न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता था कि जमानत दी जाए या नहीं।

न्यायालय की प्रक्रिया

न्यायालय इस बात पर विचार करता था कि आरोपी का अपराध कितना गंभीर है और वह जमानत पर रिहा होने के बाद क्या फिर से अपराध कर सकता है। अगर न्यायालय को लगता था कि आरोपी को जमानत देने से पीड़ित व्यक्ति या समाज को खतरा हो सकता है, तो जमानत नहीं दी जाती थी।

अभियुक्त का अधिकार

हालांकि यह अपराध जमानतीय था, लेकिन अभियुक्त को न्यायालय में अपने बचाव का अधिकार था। उसे यह साबित करने का मौका मिलता था कि उसने कोई अपराध नहीं किया है या वह जमानत पाने का हकदार है।

निष्कर्ष

आईपीसी धारा 497 एक समय तक भारतीय कानून का महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जो विवाहेतर संबंधों को नियंत्रित करने और समाज में विवाह के पवित्र बंधन को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाई गई थी। हालांकि, 27 सितंबर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा को असंवैधानिक घोषित कर दिया और इसे भारतीय दंड संहिता से हटा दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, यह धारा महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण थी और उनकी स्वतंत्रता और गरिमा के खिलाफ थी।

आज के समय में, विवाहेतर संबंधों को आपराधिक कृत्य के रूप में नहीं देखा जाता, लेकिन यह अभी भी तलाक और अन्य कानूनी विवादों के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में विवाह के प्रति सम्मान और प्रतिबद्धता को बनाए रखने के लिए लोगों को जागरूक करना आवश्यक है और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।

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